बसन्त पंचमी पर पूजनीय सरस्वती का दर्शन सुरत शब्द योग की साधना से आपको हो जाएगा : बाबा उमाकान्त जी महाराज

  • जिस देवता का दर्शन होता है उसके समान ताकत आ जाती है
  • मूर्ति पूजा या कैलेंडर में छपे फोटो से विशेष लाभ नहीं होता है इसलिए जड़ में फंसने की बजाय चेतन से चेतन की पूजा करो

 उज्जैन (मध्य प्रदेश)। जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन करने, ताकत हासिल करने, और ऊपर के लोकों में जाने, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता नामदान बताने वाले, आदि से अंत तक का सारा भेद जानने वाले इस समय के परम सन्त समर्थ सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बसन्त पंचमी पर 5 फरवरी 2022 को उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव सतसंग में बताया कि आज बसंत पंचमी पर जिन सरस्वती का जन्म दिन मनाते हैं जिनकी यहां मूर्ति, फोटो या कैलेंडर लगे हुए हैं वो ये जड़ सरस्वती नहीं है, वो चेतन सरस्वती हैं और वह लिंग शरीर में रहती हैं। आप लोग स्थूल शरीर में रहते हो। लिंग लोक में दृष्टि भोग से बच्चे पैदा होते हैं तो ऐसे ही सरस्वती पैदा हुई। ब्रह्मा, विष्णु, महेश सृष्टि के रचयिता, चलाने वाले और संहार करने वाले हैं। ये आद्या और ईश्वर काल भगवान के पुत्र हैं। 

यह सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री मानी गई। यह ब्रह्म के साथ बराबर लगी रहती हैं, ब्रह्मा की आवाज को सुनती हैं। जो ऊपर से आवाज उतरती है, ऊपर की वाणी को ब्रह्मा सुनते हैं। ब्रह्मा के मुंह से जो आवाज निकली उसको लोगों ने, ऋषि-मुनियों ने सुना और इस मृत्युलोक में लिख दिया तो वेद हो गया। जैसे बोली गयी बातों को अगर कोई इकट्ठा करके लिख दे तो वही किताब तैयार हो जाएगी। ऐसे ही आवाज को इन्होंने सुना। इनके हाथ में किताब दिखाई पड़ती है। चार हाथ इनके आपने फोटो देखा होगा। हाथ में किताब लिए हुए हैं। किताब में क्या है? वह सारा निचोड़ है इस सृष्टि का। जो ऊपर की आवाज उनको सुनाई पड़ती है  उस आवाज को उसमें वह प्रगट कर देती हैं। एक हाथ में माला लिए हुए हैं यह भी संकेत देती हैं कि भाई भजन करोगे तो उद्धार होगा नहीं तो फंस जाओगे। माला जपना सबके लिए जरूरी होता है।

जड़ चीजों से कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है, कर्मों के पर्दे जमा होने से दिखाई नहीं देता

मूर्ति पूजा या कैलेंडर में छपे फोटो से कोई विशेष लाभ नहीं होता है। जितनी जिसकी श्रद्धा भाव भक्ति होती है उतना ही लाभ मिलता है पहले के समय में लोग जब योग साधना करते थे तब इनकी दया और शक्ति लोगों में आ जाती थी। जो संतमत के आदमी हो इस चीज को समझोगे कर्म किस से होते हैं? इंद्रियों से। लेकिन जमा कहां होते हैं? ऊपर दोनों आंखों के बीचों-बीच में चतुर्थ अंत:करण पर कर्म जमा होते हैं। यह शरीर को चलाने की उसने ऐसी प्रक्रिया बना दिया जैसे आप समझो गाड़ी में कचरा आ जाता है, कहीं खून में गंदगी आ जाती है तो शरीर रुकने लगता है लेकिन वह नहीं रुकता है। ऐसा सिस्टम बना दिया फंसाने का।

साधना में प्राणों को खींचने पर इन्द्रिय चक्र पर सरस्वती का दर्शन होता है और वाणी में शक्ति आ जाती है

यह छ: दल का कमल, इंद्री द्वार पर है। चार दल तो उसको फैले हुए हैं, दो पंखुड़ियां हैं एक ऊपर की तरफ और एक नीचे की तरफ। वहीं पर सरस्वती का दर्शन होता है। जो लोग प्राणों को खींचते हैं, योग करते हैं, उनको इनका दर्शन होता है। इससे उनके अंदर शक्ति आ जाती है। कौनसी शक्ति? बोलने की वाणी में ताकत आ जाती है। जैसे कहते हैं ब्रह्म वाक्य। यह हमारा ब्रह्म वाक्य है। बहुत से लोग कहते हैं कि यह बात झूठी नहीं हो सकती है, यह सार्वभौमिक सत्य है। ऐसा बोलते हैं तो शक्ति आ जाती है। 

देखने वालों ने मूर्ति बनाकर इशारा किया

अक्षर इन चक्रों से निकले हुए हैं। जैसे य,र,ल,व यहां से निकलते हैं। यह प्रगट हुए हैं। यही अक्षर बाद में शब्द बन जाते हैं इकट्ठा हो जाते हैं। जो सरस्वती का दर्शन कर लेता है, देवी-देवताओं का जब दर्शन हुआ तो पत्थर काट करके बना दिया क्योंकि लोगों को मालूम था कि यह मृत्युलोक है, हमारा शरीर छूटेगा। धीरे-धीरे विकास होने पर उन्हीं पत्थरों को काटकर के मूर्ति बना दिया। पहले तो ऐसे खुदाई कर देते थे। उसके बाद मूर्ति बनाने लग गए। फिर और ज्यादा खोज हुई तो संगमरमर की फिर प्लास्टिक की मूर्तियां लोगों ने बनाना शुरू किया। आदमी भी उसी रूप में बन करके बैठने लग गया, नाटक, नौटंकी, जश्न होने लगे, उनका फोटो खींच उनकी ही पूजा करके सरस्वती को खुश करने के लिए लोग करने लगे। लेकिन ऐसे पूरा लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है।  पहले की क्रिया, योग करने की, कुंडलियों को जगाने की,  अब लोग कर नहीं पाते हैं, बहुत से लोग बताते भी नहीं, जानते भी नहीं, वह कठिन भी है, हर कोई उसको कर भी नहीं सकता है, सही लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है।

पुरानी कठिन साधना से अति सरल सुरत शब्द योग की साधना से आज भी आपको सरस्वती के दर्शन हो सकते हैं

आपको पहले सतसंगों में बताया गया, यूट्यूब पर भी हैं, सुनते हो। कर्म लोगों के खराब होते गए। जैसे-जैसे परिवर्तन होता गया, युग बदलता गया, बुरे कर्म जो हुए, वह जमा होकर इकट्ठा हो गए। अगर वह कर्म नहीं जलेंगे तो जो ज्ञान होना चाहिए, वह लोगों को नहीं हो पाएगा। अब कर्म कैसे जलेंगे, इससे जब आगे बढ़ेंगे तब। नीचे से चक्रों का भेदन करने वाली साधना या सुरत शब्द योग की साधना, जो आपको बताई गई है, वो करने वालों को इनका (सरस्वती) दर्शन हो जाएगा। दर्शन करने से देवताओं की जो शक्ति मिलनी है, वह आप सब लोगों के अंदर आ जाएगी।

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